आईबीएन-7 और कोबरापोस्ट के स्टिंग ऑपरेशन में झारखंड के आधा दर्जन विधायकों को राज्यसभा में वोट देने के बदले नोट के बारे मोलतोल करते हुए साफ-साफ दिखाया गया। जिन आधा दर्जन विधायकों को दिखाया गया उनमें जेएमएम के मांडू विधायक टेकलाल महतो, जेएमएम के ही लिट्टीपाड़ा विधायक साइमन मरांडी, कांग्रेस के महगामा विधायक राजेश रंजन,खिजरी विधायक साबना लकड़ा और बड़कागांव विधायक योगेन्द्र साव और बरही के बीजेपी विधायक उमाशंकर यादव उर्फ अकेला यादव शामिल हैं।
झारखंड में राज्यसभा की वोटिंग में पैसों का खेल लगभग नंगा सच है। हां, ये पहली बार हुआ कि पूरे देश ने इसे कैमरे पर देखा। राज्य बनने के बाद से ही राज्यसभा में बाहर के लोग झारखंडं का प्रतिनिधित्व करते आए हैं। यहां बाहर से का मतलब सिर्फ राज्य से बाहर के नहीं, बल्कि राजनीति के बाहर से भी है। टेकलाल महतो ने बात ही बात में ये स्वीकार किया कि विजय माल्या भी झारखंड के विधायकों को खरीदना चाहते थे। साफ है कि जिस तरह लोग झारखंड में जानते हैं कि यहां नेता पैसों के लिए बिकते हैं उसी तरह राज्यसभा में पैसों के बल प्रवेश करने वाले भी जानते हैं कि यहां का विधायक बिकाउ है।
बड़कागांव से कांग्रेस के टिकट पर जीतकर आए योगेन्द्र साव ने बीजेपी के लोकनाथ महतो को हराया था। लोकनाथ महतो वही विधायक है जिसकी पत्नी बाजार में सब्जी बेचती है। सोचिए उसको हराकर जीतने वाला टोकरी भर के नोट घर ले जाने की जुगत लगा रहा है।
डोमिसाइल के मसले पर खिजरी में आग लगानेवाले साबना लकड़ा ने एक बार हारने के बाद लगभग माफी मांगकर दोबारा जीत हासिल की। बेहद सादगी भरे अंदाज में रहनेवाला ये विधायक भी रुपयों के लिए वोट बेचने को तैयार था। सबसे दिलचस्प मामला है राजेश रंजन का जो अपने विधायक दल के नेता का सौदा करने के लिए भी खुद को अधिकृत बता रहा था। अंदरखाने दोनों के बीच क्या वाकई कोई खिचडी पकी थी , इसका जवाब तो विधायक दल के नेता राजेन्द्र प्रसाद सिंह को देना होगा। उसने गीता कोड़ा और गीताश्री उरांव समेत दस लोगों के गुट की बात की थी।
ये आधा दर्जन मछलियां सिर्फ ये बतलाने के लिए हैं कि तालाब कितना सड़ चुका है। लेकिन सबसे दिलचस्प बात ये है कि भ्रष्टाचार को लगभग रुटीन मान चुकी झारखंड की जनता का इस पूरे मामले पर क्या प्रतिक्रिया होगी, कहा नहीं जा सकता।
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