Friday, July 16, 2010

इतना सन्नाटा क्यों है भाई !चैप्टर - 2


झारखंड बीजेपी क्या कर रही है? अर्जुन मुंडा कहां हैं? क्या राष्ट्रपति शासन लगते ही सब ठंडे हो गए? क्या इसके बाद फिर चुनाव नहीं होंगे? जेएमएम के साथ सरकार बनाने में तो बड़ी उतावली थी। अठारह सीटों से भी नीचे गिरने का इरादा है क्या? पिछले छे महीनों में बीजेपी ने जो चाल चरित्र चेहरा दिखाया है, उसमें करेक्शन की कोई गुंजाइश भी नहीं ढुंढी जा रही है। पिछले चुनाव में ये अनुमान लगाया जा रहा था कि बीजेपी अगर मजबूत नहीं भी हुई तो अपने पुराने पोजीशन को बरकरार रखेगी। लेकिन हुआ इसका ठीक उल्टा। ज्यादा जोगी मठ उजाड़ वाली कहावत चरितार्थ हुई और बीजेपी का चुनाव अभियान आपसी गुटबाजी की भेंट चढ़ गया। अठारह सीटों के साथ बीजेपी बस इसी लायक रह गई कि वो जेएमएम के तंबू का बंबू बन जाए। मगर छे महीने में न सिर्फ ये तंबू तार-तार हो गया बल्कि पार्टी का सत्ता लोलुप चेहरा भी सामने आ गया, वो भी बगैर कुर्सी हाथ आए। बुरी तरह से कलई खुलवा चुके बीजेपी के सभी मठाधीश क्या अब भी अपने गिरेबां में झांकने को तैयार हैं?

आपस में लड़ने के लिए बीजेपी में धुरंधरों की कमी नहीं, मगर क्या ये कभी समझेंगे कि टांग खींचने की प्रवृति इन्हें केकड़ा बना चुकी है। सब बाल्टी में रहेंगे, कोई भी बाल्टी से बाहर से बाहर निकलने की कोशिश करेगा तो बाकी उसकी टांग खींचने में लग जाएंगे। भगवा पर भरोसा करनेवाली पार्टी इसीलिए अब भगवान भरोसे हो गई है। चुनाव की बारी आएगी तो हर नेता के दो ही एजेंडे होंगे। पहला-अपने लोगों को टिकट दिलवाओ और दूसरा-दूसरे लोगों को टिकट मिल भी जाए तो उनको हरवाने का प्रबंध करो। राजनीति में ये खेल हमेशा होता आया है लेकिन बीजेपी के लिए ये कोढ़ बन चुका है। हालत ये है कि जबतक कोई मजबूरी ना हो जाए ये लोग आपस में बैठकर बात भी नहीं कर सकते। जेएमएम के साथ मिलकर सरकार बनाने की बात हुई तो एक तबका उत्साह से आगे लपका। शायद कुर्सी का लालच था। लेकिन दूसरा तबका इसे गलत कदम करार दे रहा था। लेकिन सरकार बनी नहीं कि वो तो खुद सामने वाली से बडी गलती करने में लग गया। वरिष्ठ कहे जाने वाले नेता अपनी ही सरकार की खिंचाई करने लगे। ऐसी सरकार को तो गिरना ही था। मगर ये क्या!शाम को शिबू से समर्थन वापसी का फैसला हुआ और सुबह शिबू के ही समर्थन से सरकार बनाने की तैयारी होने लगी। फर्क ये था कि जो शिबू के साथ सरकार बनाने को गलत करार दे चुके थे वो अब खुद शिबू के साथ सरकार बनाने की कसरत में लग गए और जो शिबू की सरकार में शामिल थे वो उनकी टांग खींचने में लग गए।
झारखंड बीजेपी के नेताओं पर स्वार्थ अब इस कदर हावी हो चुका है कि पार्टी की भद्द पिटने पर भी निजी वजहों से उन्हें संतोष होता है। राष्ट्रीय स्तर पर भी पार्टी बिना नाथ-पगहा भटकती हुई सी लगती है। ऐसे में अगर झारखंड बीजेपी ने खुद को नहीं संभाला तो जनता पूरी तरह से किनारा कर लेगी। राष्ट्रपति शासन में दलों के पास चुनावों की तैयारी के अलावा कोई काम भी नहीं है। मगर बीजेपी को लगता है काठ मार गया है। नेता आपस में लड़कर थक चुके हैं और निचले स्तर के कार्यकर्ता अलग-थलग पड़ चुके हैं। यही वक्त था नेतृत्व के उभरने का। इस मुश्किल घड़ी में जो आगे बढ़कर पार्टी को रास्ता दिखाएगा वही नेता बनकर उभरेगा। लेकिन बीजेपी में तो लगता है सन्नाटा है। इतना सन्नाटा क्यों है भाई!

3 comments:

  1. राजनेता / पार्टियां गंभीर नहीं है

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  2. ट्रान्सफर पोस्टिंग को लेकर राजभवन के घ्रेराव की बातें हो रही थी लेकिन पार्टी में तो खुद इतना ट्रान्सफर पोस्टिंग हो रहा है की वो क्या राजभवन घेरेंगे. सुनने में आ रहा है अर्जुन मुंडा फिर से प्रदेश का भर सँभालने जा रहे हैं.

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  3. kisi ne kaha tha ki duniya ka ant dhamake ke saath nahi sannate ke saath hoti hai .sayad bjp netao ke takraw ke roop mai ant ki taraf ja rahi ho .subhchintako sanket samajhiye aur ekroop karya hetu ekjoot ho. bahut badhiya likh rahe hai .jaari rakhiye .

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